आपदा जोखिम न्यूनीकरण में जनस्वास्थ्य की भूमिका के अंतर्विभागीय संदर्भ

आपदा जोखिम न्यूनीकरण में जनस्वास्थ्य की भूमिका के अंतर्विभागीय संदर्भ
                                                                                                                                     हेमचंद्र बहुगुणा
वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद से ही आपदा न्यूनीकरण एवं पुर्नवास के क्षेत्र में कार्यरत अन्र्तराष्ट्रीय एंजेसियों का ध्यान निरंतर उत्तराखंड की ओर है। सामान्य परिस्थितियों में भी उत्तराखंड राज्य में स्वास्थ्य और जनस्वास्थ्य की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है खास कर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी डाक्टर जाने को तैयार नहीं है यहां तक कि राज्य के मेडिकल कालेजों से बांड भर कर रियायती शुल्क में एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के बाद भी चिकित्सक अपनी सेवाऐं देने को तैयार नहीं हैं।पहाड़ों में अक्सर एक किस्सा काफी मशहूर है कि ’ डाक्टर पहाड़ में रूकने को तैयार नहीं होते ,और इंजीनियर पहाड़ से बाहर जाने को तैयार नहीं होते’। ये कहावत मात्र कहावत नहीं है बल्कि इस कहावत में उत्तराखंड के ताने बाने का अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र दोनों छिपे हुए हैं। कहावत के भीतर का अर्थशास्त्र यह है कि तमाम र्निमाण योजनाओं और विकास की  परियोजनाओं में मिलने वाला मोटा कमीशन इंजीनियर को पहाड़ में रोके रहता है जबकि डाक्टर के न रूकने का समाजशास्त्र यह है स्वास्थ्य का पहली वरीयता में न होना और लोगों की क्रय शक्ति मैदानों की अपेक्षा पहाड़ में कम होना चिकित्सक के निजी व्यवसाय को प्रभावित करता है और भौतिक रूप से पहाड़ में तथाकथित भौतिक सुख सुविधाओं का अभाव डाक्टर को पहाड़ में रूकने का मोह पैदा नहीं कर पाता।
     जन स्वास्थ्य आज के युग में विकास का एक प्रमुख मानदंड माना जाता है । आकस्मिक परिस्थितियों और आपदा में जनस्वास्थ्य की भूमिका बहुत अधिक बड़ जाती है दरअसल बहुत सारी आकस्मिक स्थितियां के आने या नियंत्रण से बाहर होने के पीछे जन स्वास्थ्य तंत्र का कमजोर प्रबंधन जिम्मेदार होता है । आपदा में जनस्वास्थ्य का मुद्दा एक गंभीर विषय है बावजूद इसके आज भी उत्तराखंड सहित देश के  अधिकांश राज्यों में जनस्वास्थ्य के लिए न तो कोई संगठित कैडर ही विकसित किया जा सका और न ही कोई कारगर मानव संसाधन नीति ही विकसित हो पायी है।सामान्य परिस्थितियों में किसी प्रकार मानकों से समझौता कर जन स्वास्थ्य सुविधाऐं प्रदान करने में राज्य सफल हुए हैं लेकिन आपदा की भयानक स्थितियों में जनस्वास्थ्य की समझ का आभाव परिस्थितियों को भयावह बनाने का प्रमुख कारण होता है। परंपरागत रूप से यही माना जाता रहा है कि जनस्वास्थ्य स्वास्थ्य विभाग के हस्तक्षेप का विषय है और यही सोच जनस्वास्थ्य विषयों को उलझाने में अपनी भूमिका निभाती रहे है । पिछले दशकों में देश में हुई अनेक बड़ी आपदा की घटनाओं में इस बात को महसूस किया गया कि आपदा के दौरान और आपदा के पश्चात जनस्वास्थ्य के मुद्दे अन्य मुद्दों से दूर रखे गये और आपदा के बाद भी लंबे समय तक जनस्वास्थ्य प्रबंधन की असफलता के कारण समुदाय को खतरे का सामना करना पड़ा।
जनस्वास्थ्य के क्षेत्र को आज व्यापक क्षेत्र माना जाता है चिकित्सा ,स्वास्थ्य और परिवार कल्याण इसके केन्द्र बिन्दु में हैं तो पेयजल,शौचालय ,प्रशासन,पर्यावरण,पुलिस,सिविल सोसायटी,खाद्य,पोषण आदि विभागों का पूर्ण समन्वय ही हमें जनस्वास्थ्य की नीतियों की योजना एवं क्रियान्वयन में सफलता प्रदान करता है।इसी तथ्य को समझ कर उत्तराखंड में चिकित्सा,स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग,प्रशासन एवं राजस्व,जल निगम एवं जल संस्थान,खाद्य एवं रसद,पुलिस,महिला एवं बाल विकास, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण,शिक्षा,रेडक्रास एवं अन्य सिविल सोसायटी को एक मंच पर लाकर अन्र्तविभागीय समन्वय की आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि आपदा पूर्व ,आपदा के दौरान एवं आपदा के पश्चात की परिस्थितियों का प्रबंधन कर मानव जीवन की रक्षा एवं पुर्नवास किया जा सके।
आकस्मिक परिस्थितियों में जनस्वास्थ्य के मुद्दों पर समझ और आपदा के संदर्भ में प्रशिक्षण कार्यक्रम आपदा जोखिम प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक तंत्र विकसित कर सकते हंै।
जनस्वास्थ्य के प्रमुख मुद्दों को पेयजल उपलब्धता,पेयजल गुणवत्ता ,खुले में शौच,अवशिष्ट पदार्थो का निपटान ,शौचालयों की व्यवस्था,खाद्य एवं पोषण ,प्रजनन,मातृत्व,नवजात,बाल एवं किशोरावस्था स्वास्थ्य के सामान्य मानदंडों में विभाजित किया जा सकता है।चूकिं आपदा के समय सामाजिक ताने बाने का बिखराव हो जाता है इसलिए ऐसी स्थितियों में मनोसामाजिक परिस्थितियां और सामाजिक तथा व्यवहार परिवर्तन संचार की भी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। और मानव तस्करी ,यौन उत्पीड़न ,बलात्कार जैसी अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस,प्रशासन की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
   
     






आपदा संभावित जोखिमों के निस्तारण और प्रबंधन में स्थानीय निकायों की भूमिका से इंकार नही किया जा सकता स्वच्छता एवं सफाई,जल एवं मल निकास का तंत्र न र्सिफ महामारी जैसे कारणों से बचा सकता है बल्कि आपदा के जोखिम को कम करने में भी सहायक सिद्ध होता है।हालाकिं राज्य में व्यवस्थित जनस्वास्थ्य नीति का अभाव है और पब्लिक हैल्थ कैडर की कोई मानव संसाधन नीति भी नहीं है तथापि वर्ष 2005 से प्रारम्भ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) केन्द्र सरकार के परियोजना मोड में एक व्यवस्थित जन स्वास्थ्य तंत्र राज्य को उपलब्ध करा रहा है।स्वच्छ भारत मिशन,स्वजल और समेकित बाल विकास सेवाऐं जैसी अन्य केन्द्र पोषित योजनाऐं भी राज्य में जनस्वास्थ्य के क्षेत्र में तृण मूल स्तर पर आमूल-चूल  परिवर्तन लाने में सहभागी सिद्ध हो सकती हैं।
आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण के क्षेत्र में कार्य कर रहे विभागों में अन्र्तविभागीय समन्वय के साथ-साथ पब्लिक हेल्थ की समझ का विकास किया जाना आवश्यक है ताकि आकस्मिक स्थितियों में जन स्वास्थ्य रूपी पूंजी को बचाया जा सके।स्वास्थ्य विभाग को नोडल एंजेसी बनाकर जन स्वास्थ्य के अन्य घटक विभागों को एक मंच पर सतत क्षमता विकास से आकस्मिक परिस्थितियों के आने से पूर्व ही तैयारी की जा सकती है।  उत्तराखं डमें जन स्वास्थ्य  के क्षेत्र में कार्य कर रहे  डा.हरी एस बिष्ट इस तरह के आयोजनों में अन्र्तराष्ट्रीय संस्थाओं के आर्थिक सहयोग के साथ-साथ सामुदायिक सहभागिता को भी अनिवार्य तत्व मानते हैं उनका कहना है कि स्थानीय निकाय,राज्य,केन्द्र और अन्र्तराष्ट्रीय संस्थाओं के सहभागी समन्वय से न र्सिफ जनस्वास्थ्य के मुद्दों को सुलझाया जा सकता है बल्कि आपदा की स्थितियों से निपटने में भी यह रणनीति कारगर होगी।
उत्तराखंड जैसे आपदा जोखिम संभावित राज्य में  जनस्वास्थ्य विषयक पूर्व तैयारियों के लिए एक व्यापक विजन की आवश्यकता है लेकिन वर्तमान में हावी मुद्दों के बीच यह मुद्दा पंक्ति के अंत में ही नजर आता है। 

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