इजराईल की एम्बेसी द्वारा धानाचूली में कुमाऊ लिट्रेसी फेस्टिवल

मैं भी मुद्दई हूँ साहब !!!! ========================================================== इजराईल की एम्बेसी द्वारा धानाचूली में कुमाऊ लिट्रेसी फेस्टिवल आयोजित होने की खबर मेरे और मेरे जैसे नैनीताल ,अल्मोड़ा और चम्पावत की सीमाओं पर हिमालय दर्शन वाले ग्रामीणों केलिए कोई नयी खबर नहीं थी.वर्षों से अपने गाँव shaharphatak से haldwani जाते हुए धानाचूली मेरे लिए जाना पहचाना स्थान है जब मैं पांच साल का था तब इजा के साथ अपने माव्कोट(ननिहाल) हरिश्ताल/पतलोट जाते हुए इसी स्थान से हमने गाडी बदली थी बाद में सन 1995 केआसपास धानाचूली के सेब के बगीचों के बीच पहाड़ के आम घरों से भिन्न कुछ खास घर उगने लगे थे जिनका विस्तार सन 2005 तक धानाचूली से 20 किमी दूर मेरे गाँव तक हो गया .यह मेरी समझ से परे तो कभी नहीं रहा लेकिन शक्ति से परे जरूर था.हमने अपनी वर्णमाला उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के समय सीखी थी मुझे 1990 से 2000 तक पृथक राज्य आन्दोलन से लेकर नशा नहीं रोजगार दो जैसे आंदोलनों के नारे आज तक याद हैं.पिथोरागढ़ से लेकर अल्मोड़ा ,हल्द्वानी और श्रीनगर तक मेरा बचपन जनआंदोलनों की लोरी सुनकर बड़ा हुआ.सन 2004 में शहरफाटक के ऊपर गजार में the Divine village नाम से एक टाउनशिप शुरू हुई जिसके शिलान्यास से ही अंग्रेजों के समय सेचले आ रहे रस्ते बिल्डर द्वारा ग्रामवासियों के लिए बंद करा दिए गए बाद में हीटेड वाटर स्वीमिंग पूल के लिए गाँव के जलस्रोत में सब मर्सिबल पम्प लगा दिया गया जिसका तब हम ग्राम वासियों ने सालम समिति के बेनर में विरोध भी किया था.वर्ष 2005से 2008 तक में अल्मोड़ा परिसर में छात्र था तब हमारी तहसील अल्मोड़ा ही थी कभी किसी काम से तहसील जाना होता तो वहां विपन्न से दीखते अपने गाँव के लोग मिलते जो अपनी जमीन बेच कर रजिस्ट्री करवाने आये होते थे .जब घर जाता तो वहां खाता खतोनी की नक़ल लिए गाँव के लोगों को जमीन बेचने को प्रेरित करते अजनबी लोग दिखाई देते थे.बाद में अजनबी लोगोकी जगह उन पुराने लोगो ने ले ली जिन्होंने शुरुवात में अपनी जमीन बेचीं थी.धीरे धीरे गाँव की सड़क किनारे की ज्यादातर जमीने बिक गयी और भूमिधर किसान अपनी ही बेचीं जमीनों में बने आलीशान भवनों में चौकीदार बन गए .इस कहानी का लिट्रेसी फेस्टिवल क्या लेना देना?===========================================================लेकिन लेना देना है.....कैसे??? धानाचूली आज पहाड़ का पर्याय नहीं रह गया है पर्यटन के विकृत रूप का नमूना भर है .और साहित्य क्या स्वनामधन्य नवधनाड्य मंडली की बपौती भर है क्या? या सम्मान राजदरबार की बंधुवा नृतकी भर जिसे जब चाहा तब जहाँ चाहा वहा नचा दिया? इजराइल एम्बेसी का कुमाऊ में लिट्रेसी फेस्टिवल समझ में आता है लेकिन कड़ियाँ जुडती हैं हिप्पी संस्कृति की तरफ जिसमें बहुसंख्यक इजराइली युवा भंग के रंग में रंगे अल्मोड़ा के ही शैल और कसारदेवी में दम मारो दम का राग अलाप रहे होते हैं.मुख्यमंत्री इजराइल एम्बेसी के कुमाऊ में लिट्रेसी फेस्टिवल की खबरों के मध्य ही राज्य में भांग की खेती को बढ़ावा देने का बयान ,द्वारसों में जमीन की लीज और फिर मुख्यमंत्री का धानाचूली महोत्सव में शिरकत ये कडिया बहुत कुछ कहती हैं.......बस सुनने वाले की प्रतीक्षा है.==========================================================वर्षों पहले डोलबंगला गाँव में अंग्रेज हम्फ्री के बनवाए बंगले और फिर राजस्थान के पुलिसअधिकारी मधुकर टंडन और मोती सिंह की नवविवाहिता पुत्री नंदी की दास्तान इसी कहानी का प्रारंभ बिंदु है जो परिणिति नंदी की संदिग्ध मृत्यु में हुई वही अब साहित्य संस्कृति की तो नहीं????हार्डवेयर तो बिक चुके हैंअब सॉफ्टवेयर पर नजर है दाज्यू और दलाल?????हर शाख पे उल्लू बैठे हैं........

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